Wednesday 29 January 2014

गुलाम गणों में "गणतन्त्र" की धूम

हिन्दोस्तानी अवाम 1950 से लगातार 26 जनवरी का जश्न मनाते आ रहे हैं, खूब जमकर खुशियां मनाते है हैं नाचते गाते हैं मानों ईद या दीवाली हो। 62 साल के लम्बे अर्से में आजतक शायद ही किसी ने यह सोचा हो कि किस बात की खुशियां मना रहे है। क्या है 26 जनवरी की हकीकत, यह जानने की किसी ने कोशिश नहीं की। बस सियारी हू हू हू हू कर रहे हैं। क्या है 26 जनवरी को जश्न का मतलब, गणतन्त्र या खादी और वर्दीतन्त्र। गणतन्त्र के मायने कया हैं। कया 26 जनवरी वास्तविक रूप में गणतन्त्र दिवस है? है तो केसे है? कोई बता सकता है कि 26 जनवरी को जिस संविधान को लागू किया गया था उसमें गण की क्या औकात है या गण के लिए क्या है? जाहिर है कि शायद ही कोई बता सके कि 26 जनवरी 1950 को लागू किये गये संविधान में गण के लिए कुछ है। कुछ है ही नहीं तो कोई बता भी क्या सकेगा। इसलिए हम दावे के साथ कह सकते हैं कि 26 जनवरी को गणतन्त्र दिवस नहीं बल्कि वर्दीतन्त्र और खादीतन्त्र दिवस है।


गण का मतलब हर खास और आम यानी अवाम। और गणतन्त्र का मतलब है अवाम का अपनी व्यवस्था। ऐसी
व्यवस्था जिसमें अवाम की कोई इज्जत हो, अवाम को आजादी से जीने का हक हो, जनता को अपना दुख दर्द कहने का हक हो, जनता को बिना किसी धर्म जाति रंग क्षेत्र के भेदभाव किये न्याय मिले आदि आदि। लेकिन क्या गण 26 जनवरी को जिस गणतन्त्र के नाम पर उछल कूद रहे हैं उसमें गण को यह सब चीजें दीं हैं? नाम को भी नहीं, क्योंकि यह गणतन्त्र है ही नहीं। यह तो खादीतन्त्र और वर्दीतन्त्र है। दरअसल 15 अगस्त 1947 की रात जब ब्रिटिश भारत छोड़कर गये तो गांधी ने ऐलान किया कि 'आज से "हम" आजाद हैं।' गांधी के इस हम शब्द को गुलाम जनता ने समझा कि वे (गुलाम जनता) आजाद हो गये। जबकि ऐसा नहीं था गांधी के "हम" शब्द का अर्थ था गांधी की खादी पहनने वाले और खादी के जीवन को चलाने वाली वर्दी। यानी खादी और वर्दी आजाद हुई थी। गण तो बेवजह ही कूदने लगे और आजतक कूद रहे हैं। कम से कम गांधी जी के "हम" का अर्थ समझ लेते तब ही कूदते। खैर, मेरे देशवासी सदियों से सीधे साधे रहे है और इनकी किस्मत में गुलामी ही है लगभग ढाई सरौ साल तक ब्रिटिशों ने गुलाम बनाकर रखा। जैसे तैसे ब्रिटिशों से छूटे तो कुछ ही लम्हों में देसियों ने गुलाम बना लिया, रहे गुलाम ही। कहा जाता है कि 26 जनवरी 1950 को हमारे देश का संविधान लागू किया गया था उसी का जश्न मनाते हैं। अच्छी बात है संविधान लागू होने का जश्न मनाना भी चाहिये। लेकिन सवाल यह है कि किसको मनाना चाहिये जश्न? क्या उन गुलाम गणों को जिनको इस संविधान में जरा सी भी इज्जत या हक नहीं दिया गया, जो ज्यों के त्यों गुलाम ही बनाये रखे गये हैं? या उनको जिनको हर तरह की आजादी दी गयी है देश के मालिक की हैसियतें दीं गयीं हैं, जिन्हें खुलेआम हर तरह की हरकतें करने की छूट दी गयी है? जिनकेआतंक को सम्मान पुरूस्कार दिये जाते हों या जिनके हाथों होने वाले सरेआम कत्लों को मुठभेढ़ का नाम दिया जाता हो। हमारा मानना है कि गुलाम गणों को कतई भी कूदना फांदना नहीं चाहिये।



15 अगस्त और 26 जनवरी की खुशियां सिर्फ खादी और वर्दीधारियों को ही मनाना चाहिये क्योंकि 26 जनवरी 1950 को जिस संविधान को लागू किया गया वह सिर्फ खादी और वर्दीधारियों को ही आजादी, मनमानी करने का अधिकार देता है। गुलाम जनता (गण) पर तो कानून ब्रिटिश शासन का ही है। देखिये खददरधारियों को संविधान से मिली आजादी के कुछ जीते जागते सबूत। केन्द्र की मालिक खादी ने मनमाना फैसला करते हुए पासपोर्ट बनाने का काम निजि कम्पनी को दे दिया, यह कम्पनी गुलाम को जमकर लूटने के साथ साथ खुली गुण्डई भी कर रही है। कम्पनी भी लूटमार करने पर मजबूर है क्योंकि उसकी कमाई का आधा माल तो खददरधारियों को जा रहा है।
केन्द्र व राज्यों की मालिक खादी ने सड़को को बनाने और ठीक करके गुलामों से हफ्ता वसूली का ठेका निजि कम्पनियों को दे दिया। ये कम्पनियां पूरी तरह से गैर कानूनी उगाही कर रही है एक तरफ तो टौलटैक्स की बसूली ही पूरी तरह से गैरकानूनी है ही साथ ही गरीब गुलामों के मुंह से निवाला भी छीनने की कवायद है। अभी हाल ही में रेल मंत्री ने
मनमाना किराया बढ़ाकर गुलामों को अच्छी तरह लूटने की कवायद को अनजाम दे दिया और तो और इस कवायद में खादीधारी (रेलमंत्री) रेलमंत्री ने गुलाम गणों की खाल तक खींचने का फार्मूला अपनाते हुए पहले से खरीदे गये टिकटों पर भी हफ्ता वसूली करने का काम शुरू करा दिया। 26 जनवरी 1950 को लागू किये जाने वाले ब्रिटिश संविधान में आजाद हुई खादी और गुलाम गणों के बीच का फर्क का सबूत यह भी है कि हवाई जहाज के किराये में भारी कमी के साथ ही इन्टरनेट प्रयोग भी सस्ता करने की कवायद की जा रही है तो गरीब गुलाम गणों के मुंह का निवाला भी छीनने के लिए महीने में दो तीन बार डीजल के दाम बढ़ा दिये जाते हैं क्योंकि 15 अगस्त 1947 को गांधी जी द्वारा बोले गये शब्द "हम" यानी खददरधारी अच्छी तरह जानते हैं कि डीजल के दाम बढ़ने का सीधा असर गरीब गुलाम गणों के
निवालों पर पड़ता है जबकि हवाई यात्रा या इन्टरनेट का प्रयोग गरीब गुलाम गण नही कर सकते। देश के किसी भी शहर में जाकर देखिये छावनी क्षेत्र में प्रवेश पर गुलाम गणों से प्रवेश "कर" तो लिया ही जाता है साथ ही अब तो हाईवे पर भी सेना उगाही की जाती है। वर्दीधारी किसी को सरेआम कत्ल करते हैं तो उसे मुठभेढ़ का नाम देकर कातिलों को ईनाम दिये जाते हैं अगर विरोध की आवाज उठे तो जांच के ड्रामें मेंमामला उलझाकर कातिलों का बचाव कर लिया जाता है। हजारों ऐसे मामले हैं। साल भर पहले ही कश्मीर में सेना ने एक मन्दबुद्धी गरीब गुलाम नौजवान को कत्ल कर दिया ड्रामा तो किया कि आतंकी था लेकिन चन्द घण्टों में ही सच्चाई सामने आ गयी लेकिन आजतक कातिलों के खिलाफ मुकदमा नही लिखा गया, कश्मीर में पहले भी सेना द्वारा घरों में
घुसकर कश्मीरी बालाओं से बलात्कार की करतूतों के खिलाफ आवाज उठाने वाले को आतंकी घोषित करके मौत के घाट उतार दिया गया।
बरेली के पूर्व कोतवाल ने हिरासत में एक लड़के को मार दिया विरोध के बाद जांच का नाटक शुरू हुआ वह भी ठण्डा पड़ गया। यही अगर कोई गुलाम गण करता तो अब तक अदालतें उसे जमानत तक न देती। बरेली के थाना सीबी गंज के पूर्व थानाध्यक्ष वीएस सिरोही फिरौती वसूलता था इस मामले की शिकायतों सबूतों के बावजूद आजतक उसके खिलाफ कार्यवाही की हिम्मत किसी की नही हुई क्योंकि वह वर्दीधारी है उसे 26 जनवरी 1950 को लागू किये गये ब्रिटिश संविधान ने इन सब कामों की आजादी दी है जो गुलाम गणों के लिए दण्डनीय अपराध माने गये हैं। रेलों में फौजी गुलामों गणों को नीचे उतारकर पूरी पूरी बोगियां खाली कराकर फिर 50-100 रूपये की दर से पूरी पूरी सीटें देकर कुछेक यात्रियों को सोते हुए सफर करने के लिए देने के साथ ही भी खुद आराम से सोते हुए सफर करते हैं, रेल में खददरधारियों के साथ साथ उनके कई कई चमचों तक को फ्री तफरी करने के अधिकार दिये जाते है जबकि गुलाम गणों को प्लेटफार्म पर जाने तक के लिए गुण्डा टैक्स अदा करना पड़ता है। स्टेशनों, विधानसभा, लोकसभा, सचिवालय समेत किसी भी जगह में प्रवेश करने पर गुलाम गणों को चोर उचक्का मानकर तलाशियां ली जाती हैं प्रवेश के लिए गुलामों को पास बनवाना पड़ता है वह इधर से ऊधर धक्के दुत्कारे सहने के बाद जबकि खददरधारियों और वर्दीधारियों को किसी पास की आवश्यक्ता नही होती, कहीं कफर्यु लग जाये तो गुलाम गणों को धर से बाहर निकलने पर मालिकों (वर्दी) के हाथों पिटाई और अपमानित होना पड़ता है जबकि खददरधारियों और वर्दीधारियों को खुलेआम घूमने, अपने सगे सम्बंधियों को इधर ऊधर लाने ले जाने की छूट रहती है खादी ओर वर्दी को छूट होने के साथ साथ उनके साथ चल रहे सगे सम्बंधियों मित्रों चमचों तक को पास की जरूरत नहीं होती। वर्दी जब चाहे जिससे चाहे जितनी चाहे गुलाम गणों से बेगार कराले पूरी छूट है जैसे लगभग एक साल पहले बरेली में तैनात एक पुलिस अधिकारी का कोई रिश्तेदार
मर गया उसकी अरथी के साथ पुलिस अधिकारी के दूसरे रिश्तेदारों को शमशान भूमि तक जाना था, किसी पुलिस अफसर के रिश्तेदार पैदल अरथी के साथ जावें यह वर्दी के लिए शर्म की बात है बस इसी सोच और परम्परा के चलते कोतवाली के कई सिपाही ओर दरोगा दौड़ गये चैराहा अय्यूब खां टैक्सी स्टैण्ड पर और वहां रोजी रोटी की तलाश में खड़ी दो कारों को आदेश दिया कि साहब के रिश्तेदारों को लेकर जाओ, टैक्सी वाले बेचारे गुलाम गण मजबूर थे देश के मालिकों की बेगार करने को, यहां तककि डीजल के पैसे तक नहीं दिये गये और रात ग्यारह बजे छोड़ा गया, क्योंकि 26 जनवरी 1950 को लागू किये गये संविधान ने वर्दी को गुलाम गणों से बेगार कराने का अधिकार दिया है। 26 जनवरी 1950 को लागू किये गये संविधान में खादी और वर्दी को दी गयी आजादी और गण को ज्यों का त्यों गुलाम बनाकर रखने का एक छोटा सा सबूत और बतादें।
सभी जानते है कि देश भर में अकसर दुपहिया वाहनों की चैकिंग के नाम पर उगाही करने का प्रावधान है इन चैकिंगों के दौरान गुलाम गणों से बीमा, डीएल, वाहन के कागज और हैल्मेट के नाम पर सरकारी व गैरसरकारी उगाहियां की जाती है लेकिन आजतक कभी किसी वर्दीधरी को चैक नहीं किया गया जबकि हम दावे के साथ कह सकते है कि 65 फीसद वर्दी वाले वे वाहन चलाते हैं जो लावारिस मिला हुई है चोरी में बरामद हुई होती हैं। लगभग एक साल पहले बरेली के थाना किला की चैकी किला पर उगाही की जा रही थी इसी बीच थाना सीबी गंज का एक युवक ऊधर से गुजरा वर्दी वालों ने रोक लिया उसके पेपर्स देखे और सब कुछ सही होने पर उसके पेपर उसे वापिस दे दिये साथ ही उसका चालान भी भर दिया उगाही की ताबड़तोड़ की यह हालत थी कि चालान पत्र पर गाड़ी की आरसी जमा करने का उल्लेख किया जबकि उसकी आरसी, डीएल, बीमा आदि उसको वापिस भी दे दिया। गुजरे उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान चुनाव आयोग ने मतदाताओं की खरीद फरोख्त को रोकने के लिए ज्यादा रकम लेकर चलने पर रोक लगा दी इसके तहत चैपहिया वाहनों की तलाशियां कराई गयी इस तलाशी अभियान में भी सिर्फ गुलाम गणों की ही तलाशियां ली गयी। चुनाव आयोग ने खददरधारियों पर रोक लगाने की कोशिश की लेकिन खददरधारियों ने उसका तोड़ तलाश लिया। खददरधारियों ने पैसा लाने ले जाने के लिए अपने वाहनों का प्रयोग नही किया बल्कि "पुलिस, यूपीपी,
उ0प्र0पुलिस, पुलिस चिन्ह" बने वाहनों का इस्तेमाल किया या वर्दीधारी को साथ बैठाकर रकम इधर से ऊधर पहुंचाई, क्योकि खददरधारी जानते है कि वर्दी और वर्दी के वाहन चैक करने की हिम्मत तो किसी में है ही नहीं। चुनाव आयोग के अरमां आसुंओं में बह गये।
इस तरह के लाखों सबूत मौजूद है यह साबित करने के लिए कि 15 अगस्त 1947 को "गण" आजाद नहीं हुए
बल्कि सिर्फ मालिकों के चेहरे बदले ओर 26 जनवरी 1950 को लागू किये गये संविधान में "गण" के लिए कुछ नहीं जो कुछ अधिकार ओर आजादी दी गयी है वह सिर्फ वर्दी ओर खादी को दी गयी है। इसलिए हमारा मानना है कि "गण्तन्त्र" नहीं बल्कि खादीतन्त्र और वर्दीतन्त्र है।
लेखक-इमरान नियाज़ी वरिष्ठ पत्रकार एंव "अन्याय विवेचक" के सम्पादक हैं।

Monday 27 January 2014

शिवराज का तीसरा कार्यकाल

8 दिसंबर की सर्द सुबह अपने साथ एक नई उम्मीद और नया उजास लेकर आई। इस उजास में राष्ट्र जागरण का
संदेश तो था ही साथ में लोकतंत्र की मजबूती के लिए एक प्रभावी चेतना दिखाई दे रही थी।  जिस तरह से  चार
राज्यों के नतीजों में भाजपा ने अपना प्रदर्शन किया उससे लोकतंत्र के प्रति विश्वभर में एक नया संदेश पहुंचा।
मध्यप्रदेश की बात करें तो यहां फिर भाजपा फिर शिवराज का फार्मूला भाजपा के लिए काफी कारगर साबित हुआ।
प्रदेश में जबरदस्त बढ़त के साथ भाजपा ने डेढ़ सौ से ज्यादा सीटों पर अपना स्थान सुनिश्चित किया। इस जीत के
साथ सत्ता में शिवराज की हैट्रिक लगी। इस हैट्रिक में स्वर्णिम मध्यप्रदेश का उत्साह नजर आया। मप्र के मतदाताओं ने शिवराजसिंह चैहान पर पूरा भरोसा किया है और उन्हें सत्ता सौंपी है इसलिए इस युवा मुख्यमंत्री के सामने अब चुनौतियां भी बढ़ गई हैं। भाजपा की सत्ता में वापसी के साथ प्रदेशवासियों की उम्मीदें शिवराज से और बढ़ जाऐंगी। विकास के मुद्दे पर सत्ता में फिर लौटे शिवराज से अब अधूरे कामों को पूरे करने को लेकर मांग की जाएगी। इन सभी अपेक्षाओं पर खरा उतरना शिवराज और उनके साथियों के लिए काफी मुश्किलभरा रहने वाला है। हालांकि विभिन्न राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के सफल प्रदर्शन का असर लोकसभा चुनावों पर भी पडेगा। वैसे भी पार्टी पहले ही नमो नमो का नारा देकर अपनी मंशा जाहिर कर चुकी है। यदि पार्टी नमो नमो
के इस नारे को भी फिर भाजपा फिर शिवराज की तर्ज पर भुनाने में सफल रही तो उसका सबसे ज्यादा फायदा
राजस्थान, छत्तीसगढ़ सहित मप्र को भी पहुंचेगा और तब मुख्यमंत्री शिवराज की असली परख की जाएगी। प्रदेश की जनता ने पिछले समय हुए विकास कार्यों को देखते हुए जिस भाजपानीत सरकार को चुना उस पर विकास की गति को तेज करने का दोहरा दबाव रहने वाला है। प्रदेश विकास के लिए योजनाऐं तो काफी बन चुकी हैं। मगर जरूरत अब इन्हें धरातल पर लाए जाने की महसूस की जा रही है। शिवराज से अब घोषणावीर की छवि से निकलकर
कर्मवीर बनने की मांग जनता द्वारा की जाएगी। यह मांग ही शिवराज के राजनीतिक जीवन को तय करने वाली दिखाई दे रही है।
पिछली पारियों में भाजपा ने प्रदेश विकास का जो फार्मूला दिया है वह इंदौर, भोपाल तक ही सिमटकर रह गया है। प्रदेश सरकार पर समूचे प्रदेश के विकास की जिम्मेदारी का दबाव रहने वाला है। प्रदेश में हैट्रीक के साथ जनता की अपेक्षाऐं भी बढ़ती नजर आ रही हैं। प्रदेश के मुखिया शिवराज से हर हाथ काम और हर शहर सुविधा मांग रहा है। जो काफी चुनौतियों भरा रह सकता है। जिस तरह से ग्लोबल इंवेस्टर्स मीट में मेमोरेंडम आफ अंडरस्टेंडिंग पर हस्ताक्षर किए गए उन्हें वास्तविकता के धरातल पर उतारा जाना भाजपानीत सरकार के लिए बेहद जरूरी हो जाएगा। जब बात उज्जैन की हो तो यह काफी अहम हो जाता है। राजनीतिक परिदृश्य में उज्जैन भाजपा का मजबूत गढ़ रहा है। पिछले चुनावों में भाजपा को मिली जीत और इस चुनाव में लोगों द्वारा शिवराज और विकास को दिया गया जबरदस्त समर्थन एक बार फिर भाजपा सरकार में जोश और दम भरने के लिए पर्याप्त है। शहर के लिए भाजपा की यह जीत इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि आगामी समय में 2016 के दौरान सिंहस्थ आयोजन होना है। शहर के नगर निगम बोर्ड में भी इस बार भाजपा का वर्चस्व बना रहा वहीं प्रदेश में हैट्रिक बनाने के बाद अब सरकार से तालमेल की आस लगाई जा रही है। यदि शहर विकास के मुद्दे पर जनप्रतिनिधियों में आपसी सामंजस्य बना रहता है तो जनता को बहुत लाभ मिल सकता है। यही उम्मीद शिवराज सरकार से लगाई जा रही है। इसके अलावा उज्जैन उत्तर के विधायक पारस जैन प्रदेश के मंत्रीमंडल में कई बार शामिल रहे हैं। जिस कारण उज्जैन की ओर विकास की अपेक्षा बढ़ जाती है। दक्षिण से जनता ने डाॅ. मोहन यादव पर विश्वास जताया है। जिस कारण सभी को दक्षिण में भी विकास की बयार चलने की आस लगी है। खुद मुख्यमंत्री शिवराज का भी उज्जैन से लगाव किसी से छुपा नहीं है। जिस कारण शहर के लिए विकास का पिटारा खुल सकता है। मगर इन सभी के बावजूद चुनौतियां  मुंहबाऐं खड़ी हैं। यदि भाजपा की यह सरकार इन चुनौतियों पर खरी उतरी तो शिवराज और अन्य सहयोगियों का कद और बड़ा हो सकता है। और अगर ऐसा नहीं हुआ तो सभी जानते हैं जनता ने दिग्गी राजा को अभी तक नहीं बख्शा है।

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